📅 5 मई 2025 | आज हम संथाली भाषा और संस्कृति के प्रणेता, पंडित रघुनाथ मुर्मू के जन्मदिवस को उत्साह के साथ मना रहे हैं! 🙏
🌟 ᱯᱟᱸᱰᱤᱛ ᱨᱟᱹᱜᱷᱱᱟᱛᱷ ᱢᱩᱨᱢᱩ ᱡᱟᱱᱟᱢ ᱢᱟᱦᱟᱸ: ᱜᱩᱨᱩ ᱜᱚᱢᱠᱮ ᱢᱟᱱᱚᱛ ᱡᱚᱦᱟᱨ! 🌟
📅 ᱕ ᱢᱮᱭ ᱒᱐᱒᱕ | ᱛᱮᱹᱦᱮᱹᱧ ᱟᱵᱳ ᱥᱟᱱᱛᱟᱞᱤ ᱯᱟᱹᱨᱥᱤ ᱟᱨ ᱟᱹᱨᱤᱪᱟᱹᱞᱤ ᱨᱮᱱ ᱯᱨᱟᱱᱮᱛᱟ, ᱯᱟᱸᱰᱤᱛ ᱨᱟᱹᱜᱷᱱᱟᱛᱷ ᱢᱩᱨᱢᱩᱣᱟᱜ ᱡᱟᱱᱟᱢ ᱢᱟᱦᱟᱸ ᱨᱟᱹᱥᱠᱟᱹ ᱥᱟᱞᱟᱜ ᱢᱟᱱᱟᱣ ᱦᱭᱩᱳᱜ ᱠᱟᱱᱟ!🙏
✍️ कौन थे पंडित रघुनाथ मुर्मू?
"गुरु गोमके" के नाम से प्रसिद्ध, पंडित रघुनाथ मुर्मू (1905-1982) ने ओल चिकी लिपि का आविष्कार कर संथाली भाषा को लिखित रूप और वैश्विक पहचान दी। 🌍
प्रकृति से प्रेरित उनकी लिपि ने संथाली समाज की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया। 🏞️
150+ पुस्तकों के लेखक, शिक्षक और समाज सुधारक, जिन्होंने संथाली साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 📚
मयूरभंज, ओडिशा के डांडबोस गांव में जन्मे इस महान व्यक्तित्व को बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और रांची विश्वविद्यालय ने सम्मानित किया। 🏅
🌱 उनका योगदान:
ओल चिकी लिपि: संथाली भाषा को अपनी पहचान दी, जो 2003 में भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल हुई।
संथाली शिक्षा को बढ़ावा: स्कूलों और पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रेरित किया।
सांस्कृतिक जागरूकता: उनके नाटकों और गीतों ने संथाली समाज में एकता और गौरव का संचार किया।
🏛️ उनकी विरासत:
पंडित रघुनाथ मुर्मू मेडिकल कॉलेज, बारीपदा और पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय, जमशेदपुर उनके सम्मान में स्थापित।
उनके नाम पर साहित्य पुरस्कार और मयूरभंज में उनकी विशाल प्रतिमा उनकी अमर कहानी कहती है। 🗿
💡 आज हम क्या सीखें?
पंडित रघुनाथ मुर्मू का जीवन हमें सिखाता है कि अपनी जड़ों से जुड़कर और दृढ़ संकल्प के साथ हम अपनी संस्कृति को विश्व पटल पर ले जा सकते हैं। आइए, उनकी शिक्षाओं को अपनाएं और संथाली भाषा व संस्कृति को और प्रचारित करें! 💪
🎉 जयंती समारोह:
झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में आज मूर्तियों पर माल्यार्पण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और पूजा-अर्चना के साथ उनकी जयंती मनाई जा रही है। आप भी इस उत्सव में शामिल हों! 🥁
📢 आप भी फैलाएं यह संदेश:
अपनी भाषा और संस्कृति को गर्व के साथ अपनाएं।
ओल चिकी लिपि सीखें और दूसरों को प्रेरित करें।
इस पोस्ट को शेयर करें और गुरु गोमके के योगदान को हर दिल तक पहुंचाएं! 🚀
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